विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र

प्रस्तावना
“विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र” विषय पर यह ब्लॉग वर्तमान परिवेश में ‘सभी विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र की स्थापना’ पर ध्यान दिलाने हेतु लिखा गया है| साथ ही यह भी बताया गया है की ऊष्मायन केंद्र की स्थापना, समाज को तामसिक प्रवृत्ति से दूर करते हुए, सात्विक प्रवृत्ति की ओर उन्मुख करने हेतु मजबूत पहल है|
विवरण
“विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र” विषय को विस्तार से व्यक्त करने हेतु विवरण को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है:
- विद्यालय एवं ऊष्मायन केंद्र का अर्थ
- शिक्षा पद्धति में परिवर्तन
- प्रकृति एवं मानव जीवन
- ऊष्मायन केंद्र का लक्ष्य
-
विद्यालय एवं ऊष्मायन केंद्र का अर्थ
विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र पर विस्तार से तभी लिखा और समझा जा सकता है, जब हमें दो वांछित शब्द ‘विद्यालय’ और ‘ऊष्मायन केंद्र’ का पूर्ण ज्ञान हो| विद्यालय शब्द का अर्थ है वह स्थान जहाँ संचार के उपयुक्त माध्यम के प्रयोग से ज्ञान का आदान प्रदान होता है| आदान प्रदान इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि ज्ञान लेने से भी बढ़ता है और ज्ञान देने से भी बढ़ता है|
ऊष्मायन केंद्र से तात्पर्य है, ऐसा स्थान जहाँ उद्यमिता की भावना को प्रोत्साहन देने के साथ साथ भौतिक स्तर पर नवाचार को बढ़ावा देकर विद्यार्थियों को उद्योग लगाने हेतु प्रेरित किया जा सके।
-
शिक्षा पद्धति में परिवर्तन
-
Change is Life प्रत्येक विद्यालय में ‘ऊष्मायन केंद्र’ की स्थापना इसलिए करना चाहिए ताकि विद्यालयों की शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आ सके। परिवर्तन जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है, बचपन से बुढ़ापा और फिर नवीन जीवन, इसी परिवर्तन का द्योतक हैं। ज्ञान के आदान प्रदान में समयानुकूल परिवर्तन आवश्यक है। परिवर्तन से, शिक्षार्थी (अध्यापकगण) यह समझने में सफल हो पाएंगे की जिस विषय को समझा रहे हैं उसका उपयोग वास्तविक जीवन में कहाँ और कैसे संभव है। तथा विद्यार्थी (छात्रगण) यह समझ सकेंगे की, जिंस विषय को उन्होंने समझा है, उसको वास्तविक जीवन में कैसे प्रयोग में लाएँ , ताकि जीवन एक उद्देश्य के साथ जिया जा सके। जब विद्यार्थियों का जीवन लक्ष्य निर्धारित होगा, तभी वह निश्चय ले पाएंगे की, लक्ष्य प्राप्ति हेतु कौन कौन से प्रयत्न कैसे कैसे करना चाहिए। “सउद्देश्य प्रयास निश्चित परिणाम देता है” इस संदेश का ज्ञान होने से विद्यार्थी प्रयास करने हेतु उत्साहित रहेंगे तथा स्वयं के आधार पर जीवन जीने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकेगा।
-
प्रकृति एवं मानव जीवन

प्रस्तुत विषय को पढ़ते समय एक मूलभूत प्रश्न दिमाग में आते हैं की मनुष्य का जीवन परिवर्तनशील क्यों होता है, और जीवन को एक लक्ष्य के साथ क्यों जीना चाहिए? विचार मंथन से पता चलता है कि मनुष्य एक सामाजिक एवं प्रगतिशील प्राणी है। अन्य सभी प्राणियों की आवश्यकता प्रकृति पूर्ण करती है, परंतु मनुष्य की आवश्यकता, मनुष्य को स्वयं ही पूर्ण करना होता है। साथ ही साथ ऐसा कार्य करना है जिससे प्रकृति में संतुलन बना रह सके। इस विषय पर और ज्यादा समझने हेतु कृपया निम्नलिखित वेबसाइट को पढ़ें:
https://readwrite.in/aim-of-life/
https://readwrite.in/udyamita-ka-mahtva/
-
“विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र” का लक्ष्य

“विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र” का लक्ष्य है कि शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन लाया जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु शिक्षार्थी एवं विद्यार्थी दोनों की मानसिकता में परिवर्तन लाना आवश्यक है। प्रत्येक कक्षा में किस उम्र के विद्यार्थियों को कौन कौन से विषय कैसे कैसे पढ़ना है इत्यादि प्रश्नों के उत्तर पर ध्यान देना पड़ेगा। प्रत्येक कक्षा के विभिन्न स्तरों के अनुरूप नवा चार की प्रकृति को बढ़ावा देना होगा। उदाहरण के लिए, स्वयं की और स्वयं के रहने के स्थान की सफाई सफलतापूर्वक कम समय में कैसे की जाए? घर के अंदर और बाहर गमले में कौन से पौधे लगाए जाएं और उन्हें कैसे विकसित किया जाए? घर के अंदर और बाहर के कचरे का प्रबंधन कैसे किया जाए? बदलते हुए तकनीकी परिवेश के अनुरूप हम को कैसे और किस किस काम हेतु बदला जाए? इत्यादि।
निष्कर्ष
“विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र” ब्लॉग का सार है कि मनुष्य एक सामाजिक एवं परिवर्तनशील प्राणी है। मनुष्य की रचना का सार है कि वह प्रकृति की आवश्यकताओं को पूरा करें जिससे अन्य प्राणियों की भलाई निश्चित हो सके। ऐसा करने के लिए अनेक प्रकार के उद्यमो की स्थापना आवश्यक है। तथा, मानवीय लक्ष्य की प्राप्ति हेतु विद्यालयों में ऊष्मायन केंद्र की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है ।