Udyamita Ki visheshtaen- भूमिका :
उद्यमिता की विशेषताए पर लेख भारत मैं उप्लब्ध विध्यालयो को उद्द्यमि शिक्षा संस्थानो मैं परिवर्तन हेतु लिखा गया है ।
नतीजतन, प्रस्तुत परिवर्तन शिक्ष्ण के दौरान ही रोजगार उप्लब्ध करा देने के प्रस्ताव पर आधारित है ।
काम करने के लिये मनुष्य को उर्जा की जरूरत होती है ।उर्जा सम्पूर्ण भूगोल मैं निश्चित है।
परंतु उसके रूप अलग अलग हैं,जैसे की पानी ,हवा, आकाश, अग्नि और धरती आदी ।
वर्तमान समय मे उर्जा के विभिन्न रूपो का दुरुपयोग शारिरिक विकार, अविकसित मानसिक अवस्था से होता है ।
इसिलिये, बढ्ती जनसख्या के कारण अस्तपतालो की संख्या भी बढ्ती जा रही है ।
समय आ गया है की मानव उर्जा के सदुपयोग की तरफ ध्यान दे और स्वरोजगार को अपनाये ।
स्वरोजगार को प्रधानता देने हेतु विभिन्न ब्लोग लिखे गये हैं । लिंक प्रस्तुत है:
https://readwrite.in/entrepreneurship-and-small-business-management/
Udyamita Ki visheshtaen- उद्यमिता की विशेषताए विषय का विवरण
उद्यमिता शिक्षा का उद्देश्य एवम कारण :
शिक्षण संस्थानो के द्वारा विद्धार्थियो को इतना निखारा जाये ताकी विद्यार्थी स्व्यम के उपर आधारित होकर प्रगतिवान बने।फलस्वरूप,
स्वरोज्गारी समाज की प्रगती मैं साधक सिद्ध होते हैं। अन्यथा, खाली मनुश्य अप्रगती का कारण बनते हैं ।
उद्यमिता शिक्षा – लक्ष्य एवम कारण :
लक्ष्य है स्वरोजगारिता की प्रगती ।वर्तमान परिस्थितिया समाज को तामसिक प्रव्रत्ति की ओर उन्मुख कर रही हैं ।
परंतु, प्रगती की सही दिशा सात्विक और राजसिक प्रव्रत्ति द्वारा ही सम्भव है ।
इस वजह से, उद्द्मी राजसिक जीवन बिताते हुये सात्विक लक्ष्य के लिये काम करता है ।
इसिलिये, उद्द्यमी शिक्षण संस्थानो को स्वरोजगारिता को बढावा देना होगा ।
उद्यमिता शिक्षा –उद्द्य्मि शिक्षण संस्थान का विवरण :
भारत एक बहुभाषाई देश है ।
यथार्थ मे,प्रत्येक मनुष्य बचपन की अवस्था से श्ब्दो को जिस उच्चारण और अर्थ से सुनता है वही स्व्यम की जिंदगी मैं भी अपनाता है ।
तथापी, दो मनुश्यो की आवाज एक जैसी नही होती है ।
अगर, उच्चारण भी अलग अलग हो तो बोले गये शब्दो के अर्थ को समझना कठिन होता है ।फलस्वरूप,
बहुभाषाई देश मैं शिक्षक और विधार्थी के बीच मैं संचार अंतर गहराता जा रहा है ।आखिकार,ऐसी स्थिती मैं शिक्षा निर्मूल सिद्ध होती है ।
इस खाई को पाटने हेतु विध्यार्थि शारिरिक ,मानसिक, और आध्यात्मिक उन्नती के साथ साथ किसी विशेष क्षेत्र मैं कुशल्ता प्राप्त करे।और,
अंतत:, उद्यमिता की ओर अग्रसर हो।
यद्यपी,शारीरिक विकास के लिये पोशण की आवश्य्क्ता है।
तथापी,मानसिक विकास के लिये शिक्षा की आवश्यक्ता है ।
और साथ ही साथ, आध्यात्मिक विकास के लिये ध्यन और योग की आवश्यक्ता है ।
उद्द्यमी शिक्ष्ण संस्थानो को तीनो ही तरीको से शिक्षक और विधार्थी के बीच की खाई को दूर करने का प्रयास करना होगा ।
Udyamita Ki visheshtaen- उद्यमिता की विशेषताए – लक्ष्य प्राप्ती का तरीका:
वर्तमान पद्ध्ती मे एक बोलता है और बहुत सारे सुनते हैं तदानुसार, एक वाक्य के अनेको अर्थ निकालते हैं ।
प्रस्तुत पद्ध्ती है की एक विषय पर अनेको लोग बोले और एक व्यक्ती सुने और समझे।
स्वभाविक रूप से, इस पद्ध्ती से अनेकता मे एकता आयेगी और संचार मे व्याप्त खाई कम होती जायेगी ।
परंतु इसको यथार्थ मे कैसे सम्भव करे? इसका तरीका है Information Technology.भारतिये परिवेषानुसार विभिन्न सोफ्ट्र वेअर और एप को विकसित करना होगा ।
Udyamita Ki visheshtaen- उद्यमिता की विशेषताए – स्वरोजगारिता को बढावा देने का कारण :
भौतिकता के आधार पर आदान प्रदान को पैसे के आधार पर नापने का प्रयास किया जाता है।
परंतु, शिक्षा के क्षेत्र मे ज्ञान के आदान प्रदान को पैसे से नही नापा जा सकता है क्योंकी ज्ञान देने से भी बढ्ता है और लेने से भी ।
इसिलिये, क्यो ना हम इस संदेश को माने और प्रकृति को कुछ दे ज्यादा और ले कम ।
मनुष्य को छोड कर बाकी सभी पशु पक्षियो क्रे विभिन्न वर्गो का रंग रूप एक जैसा और आवाज एक जैसी होती है ।
अंत मे,मनुष्य रूप मे आकर प्रकृति संदेश देती है की मैं सबके लिये हूँ पर तुम मेरे लिये हो।
यहाँ तक की घर कपडे व्यंजन सभी का प्रबंध मनुष्य को खुद करना पड्ता है ।अतः हमे प्रकृति के संदेश को आत्म्सात करना होगा और प्रकृति के नियमानुसार चलना होगा ।
उप्सन्हार :
उद्द्य्मि ऐसे व्यक्ती होते हैं जो स्व्यम की सोच के आधार पर समाज को कुछ नया देना चाह्ते हैं ।और उसके लिये जोखिम भी उठाते हैं।
अंतत: ,उनके द्वारा प्रदत्त उत्पाद एवम सेवाए समाज के लिये उपयोगी सिद्ध होती हैं ।
अगर प्रश्न है की उद्य्मिता को ही क्यो प्राथमिकता दी जाये ? तो इस प्र्श्न का उत्तर है की :
- खुद उद्द्यमी होकर दूसरो को उद्द्यमी बनाने से लक्ष्य जल्दि प्राप्त होता है ।
- लक्ष्य को ध्यान मे रखते हुये पूरी लगन से प्रयास करने से उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं ।
- समय अमूल्य सम्पत्ति है ,इसको खर्च करने का सबसे उत्तम तरीका है की अन्य को भी समय के उपयोग के लायक बनाया जाये ।
- स्व्यम पर निर्भर होकर काम करने से आत्म्विश्वास बढ्ता है ।
- इति
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