उद्यमिता का महत्व

    उद्यमिता का महत्व –प्रस्तावना

अगर ईश्वरत्व शब्द का अर्थ समझ मे आ जाये तो उद्यमिता का महत्व अपने आप समझ मे आ जायेगा।

उद्यमिता की विषेशताओ को समझने हेतु लिंक प्रस्तुत है:

https://readwrite.in/udyamita-ki-visheshtaen/

Udyamita ka mahtva
Read Write blogs for young entrepreneurs

 

“उद्यमिता एवं ईश्वरत्व” विषय, वास्तविकता के आधार पर प्रगति को नई दिशा देने का प्रयास है।

इस लेख के विचार पृथ्वी के सौरमंडल की सीमा तक ही सीमित हैं।

उद्यमिता का महत्व   – वर्णन 

वर्तमान परिवेश में सम्पूर्ण मानवीय समाज के विचार  विभिन्न विचारधाराओं में बंट चुके हैं तथा बंटते जा रहे हैं।

कारण चाहे राजनैतिक हो या सामजिक ,विचारों का समग्र रूप तामसिक होता जा रहा है।

 हम सब साथ मिलकर  विचार करें की सम्पूर्ण मानवीय समाज को फिर से सत्प्रवृत्ति की ओर उन्मुख किया जाये ।

किस प्रकार से विकासशील देशों को विकसित देशों की श्रेणी में लाएं ?

साथ ही सत्प्रवृत्तियों की ऐसी विचारधाराओं का प्रवाह शुरू किया जाए ताकि विकसित देश भी  सबसे हाथ मिलाकर आगे बढ़े।

ईश्वरत्व की व्याख्या:

अगर सम्पूर्ण सृष्टि के विकास का अध्यन करें तो पता चलता है की ईश्वरत्व एक विचार है।

जिस प्रकार विचारों का कोई रूप या सीमा नहीं होती उसी प्रकार ईश्वरत्व की भी कोई सीमा नहीं है।

 विचार बिना किसी समय सीमा के कहीं भी जा सकते हैं और वापस आ सकते हैं,।

उदाहरणार्थ हम स्वयं के विचारों को सौरमंडल की किसी भी सीमा में ले जाकर  वापस ला सकते हैं।

क्योंकि विचार निर्विकार हैं,अर्थात विचारों के अंदर छुपी शक्ति असीम है।

एवं इसी शक्ति का उपयोग करके विचार कहीं भी जा सकते हैं एवं कुछ भी कर सकते हैं।

उर्जा एवम ईश्वरत्व

वैज्ञानिक रूप से देखा जाये तो पता चलता है ईश्वरत्व शक्ति को ऊर्जा का नाम दिया गया है।

जिसका अर्थ है “काम कर सकने की योग्यता”।

मेरे मतानुसार इसी वैचारिक शक्ति को चेतना शक्ति कहते हैं।

सृष्टि की निरंतरता का मूलभूत आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक आधार है “काम एवं परिणामो का साथ साथ होना “

“एक वैचारिक शक्ति से अनेक शक्तियां साथ साथ पैदा होती हैं”, उनके अनेक रूप होते हैं ।

और रूपों के अनेक विचार होते हैं तथा यह क्रम अनवरत चलता रहता है।

विचारों की शक्ति को चेतना एवं रूपों की शक्ति को आत्मा का नाम दिया गया है।

इनका कार्य क्षेत्र अलग अलग है परन्तु प्रारम्भ एवं विकास साथ साथ होता है।

विचार शक्ति

इस लेख का विषय विचारों को चेतना शक्ति का आधार मान कर लिखा गया है।

क्योंकि विचारों की शक्ति का कोई रूप नहीं होता है अतः वह किसी भी सीमा से बाहर होती है ।अतः,इसी शक्ति को ईश्वरत्व की संज्ञा दी जाती है। 

फिर से दोहराया जाता है की विचार शक्ति में निरंतरता है, एक विचार से दूसरा विचार उनके रूप एवं रूपों में व्याप्त विभिन्न विचार इसी निरंतरता का द्योतक हैं।

सम्पूर्ण शक्ति अन्नत काल से निरंतर है,उसका मूलभूत कारण विचारों की निरंतरता है। 

हर मानव के अंदर विचार तीन रूपों में होते हैं,पहला सात्विक, दूसरा राजसिक तीसरा तामसिक वर्तमान दौर में सम्पूर्ण विश्व तामसिक प्रवृत्ति की ओर उन्मुख है।

उद्यमिता का इश्वरिये सिद्धांत एवं व्याख्या:

विषय की गहराई गहराई बताती है  कि सृष्टि की निरंतरता के परिपेक्ष्य में  उद्यम शब्द निरंतर क्रिया का परिचायक है।

जिसका उद्देश्य है प्रगति। 

सामजिक  परिस्थितिवश अधिकतर समय उद्यम शब्द का अर्थ बहुत ही सीमित रखा जाता है जैसे की कारखाना चलाना व्यवसाय करना आदि आदि।

वास्तविकता में अनेकों क्रियाएं विद्यालय चलाना,शिक्षा देना आदि भी उद्यमी प्रक्रियाएं हैं अगर उनमे निरंतरता और प्रगति है तो,ध्यान देने वाली दो बातें हैं (१)  निरंतरता (२)  प्रगति

निरंतरता का अर्थ है की गतिविधि को सिर्फ स्वयं के लाभ हेतु किसी भी प्रकार के बंधन में न रखकर हमेशा होने की परिधि में लाया जाय ।

एवं, प्रगति का अर्थ है गतिविधियों का परिणाम समाज एवं सृष्टि के लिए श्रेयस्कर हो और ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र तक बढ़ाया जाए।

जिस प्रकार विचारों में व्याप्त चेतना शक्ति ईश्वरत्व एवं निरंतरता का प्रतीक है ।

उसी प्रकार मानव के अंदर व्याप्त उद्यमिता भी निरंतरता का परिचायक है। 

हर मानव प्रगति करना चाहता है और लगातार करते रहना चाहता है,परन्तु उसके जीवन का सही लक्ष्य क्या हो?

इस प्रश्न का उत्तर समझने में उससे गलती हो सकती है। 

उद्यमिता की इस संक्षिप्त व्याख्या से ही इसका सम्बन्ध ईश्वरत्व से सही अर्थों में दृष्टिगोचर होता है।

सर्वमांगलिकता हेतु शिक्षितो में ,उद्यमिता का महत्व   की आवश्यकता: 

प्रश्न उठता है की शिक्षितो को उद्यमिता की भावना क्यों स्वीकार करना चाहिए ?

उन्हें स्वयं के लाभ को प्राथमिकता न देकर समाज एवं प्रकृति के लाभ को प्राथमिकता क्यों देना चाहिए ?

इन प्रश्नो का सही उत्तर पाने के लिए हमें विचारों की निरंतरता अवं उसके परिणामो पर ध्यान देना होगा। 

वैचारिक ऊर्जा का परिणाम 

वैचारिक ऊर्जा की गतिविधियों के फलस्वरूप,उजाला ,पवन,पानी एवं पृथ्वी आदि का निर्माण हुआ।

फिर पृथ्वी पर वनस्पति,पेड़,जीव जंतुओं ने आकार लिया।

ध्यान देने योग्य बात है की प्रकृति की गति मानवीय आकार पाकर विराम लेती है।

और प्रकृति की अपेक्षा है मानवीय आकार उसकी निरंतरता में सहयोगी सिद्ध हों बाधक न बनें।

अन्यथा दुर्गति यानि की प्रगति की विपरीत दिशा शुरू हो जाती है। 

  हमे अहसास करना है की  मानव को छोड़ बाकी सब जीव   स्वछंदता पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

अर्थात प्रकृति उन्हें सन्देश देती है “मैं तुम्हारे लिए हूँ” परन्तु मानव आकार प्रकृति सन्देश देती है “तुम मेरे लिए हो”। 

यहां तक की मानव को स्वयं के शरीर के कपड़ों आदि की जरूरतों को स्वयं पूरा करना होता है।

अगर हमें प्रकृति की निरंतरता को बनाये रखना है तो प्रकृति के इस सन्देश को आत्मसात करना होगा ।

और स्वयं की गतिविधियों को प्रकृति एवं समाज की प्रगति में साधक बनाने की दिशा में समर्पित कर देना होगा। 

अन्यथा परिणाम हम सब देख रहे हैं ,एटम बम के धमाके ,भूकंप, मानव को जला देना आदि और इसका भयावह अंतिम परिणाम की पृथ्वी का वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा।

अर्थात हमें स्वयं के घमंड से बाहर आकर सामाजिक प्रगति हेतु कार्य करना होगा,चाहे हम शिक्षक हैं तो भी और नेता हैं तो भी।

अतः सर्वमांगलिकता हेतु उद्यमी  विचार  की प्राथमिक आवश्यकता है।

शिक्षितो को उद्यमी बनाने हेतु सुझाव :

प्रश्न है स्वयं की और समाज की विचारधाराओं को किस प्रकार नई दिशा दे सकते हैं?

विषय से सम्बंधित मुख्य कठिनाई है की  उद्यमिता की भावना को कैसे आत्मसात किया जाए ?

जनाधार कैसे विकसित किया जाए?

इस कार्य हेतु निम्नलिखित विचारों का विस्तार बार बार करना होगा –

(अ) शरीर क्षणभंगुर है अतः स्वयं के लिए सही लक्ष्य का निर्णय करो। हमें इंसानो की चेतना शक्ति को जगाना होगा।

(ब)मानव का आकर लिया है तो समाज की प्रगति में सहायक बनो, यह स्वर्णिम अवसर है ।

ताकि, प्रकृति तुम्हे मानव के रूप में बार बार बुलाये। मानवीय प्रभुता को जगाना होगा।

उपरोक्त बातें कहना और लिखना  तो बहुत ही आसान हैं परन्तु क्रियान्वय बहुत ही कठिन है।

 जबकि मानव की रोटी,कपड़ा और मकान की बुनियादी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पा रही हैं, तो वह प्रकृति और समाज की प्रगति के बारे में कैसे सोचेगा ?

अतः इस कार्य का आरम्भ अभियंताओं को ही करना पड़ेगा।

उनको स्वयं के मुख्य उद्देश्यों की तरफ ध्यान देना होगा। उद्देश्यों की तरफ ध्यान देने हेतु प्रकृति की कार्य करने की प्रवृत्ति की ओर ध्यान देना होगा। 

वैचारिक ऊर्जा एवम प्रभुता

वैचारिक प्रभुता मुख्य रूप से उजाले और वायु के माध्यम से सब तरफ व्याप्त है। वायु से जल और जल से जीवन का निर्माण होता है फिर अनेक रूप और विचार प्रचलन में आते हैं।

अभियंताओं द्वारा अच्छे कार्यों को करने के लिए एवं सम्पूर्ण मानव समाज की वैचारिक चेतना शक्ति को सही दिशा की तरफ जाग्रत करने के लिए “स्वच्छ अँधेरा ,स्वच्छ रौशनी ,स्वच्छ वायु एवं स्वच्छ जल व्यवस्था की तरफ सर्वप्रथम ध्यान देना होगा”।

पर्यावरण और वातावरण विचारों के विभिन्न रूपों से बनता है।

जब वातावरण स्वच्छ होगा तो विचार अपने आप स्वार्थ की धुंद से बाहर आएंगे।

और ,स्वस्थ विचार स्वस्थ समाज का निर्माण करेंगे।

मानव को समझ में आने लगेगा की वह अपनी बुनियादी आवश्यकताएं कैसे पूरी करे एवं सरकार की कार्य पद्धति एक निश्चित दिशा ले लेगी।

उद्यमिता का महत्व –   सम्पूर्ण विषय का सार

सम्पूर्ण विषय का सार है की विचारों में शक्ति है,निरंतरता है।

विचारों में व्याप्त इसी शक्ति का नाम चेतना शक्ति है।

चेतना शक्ति के कारण,विचारों ने अनेक रूपों और विचारों में आकर सम्पूर्ण प्रकृति का रूप लिया है।

आपको ध्यान देना होगा की सिर्फ मानव के रूप में आकर विचारों ने मानव को बुद्धि दी है की वह विचारों की शक्ति को समझे ।

इसी शक्ति को उद्यमिता कहते हैं।

 चेतना शक्ति ने यह इसलिए किया है की ताकि मानव प्रकृति की गति को आगे बढ़ा सकने में सहयोग करे।

उसके जीवन का लक्ष्य सत अर्थात अर्थात प्रगति हो ।

अन्यथा प्रकृति की गति विपरीत दिशा में बढ़ना प्रारम्भ हो जाएगी एवं सम्पूर्ण मानव समाज का अस्तित्व खतरे में पढ़ जायेगा।

इसी उद्यमिता की भावना को आत्मसात करते हुए अभियंता स्वयं की बुद्धि का इस्तेमाल करें और समझें की वैचारिक योजना के दो मुख्य स्रोत हैं ।

पहली स्रोत -चमक जो अँधेरे में भी होती है और उजाले में भी और, दूसरा स्रोत है वायु।वायु भी दोनों माध्यमों में होती है।

हवा से बनता है जल और जल से जीवन का निर्माण होता है।

अतः अभियंताओं के जीवन का मुख्य उद्देश्य है की विचारों के इन स्रोतों को  साफ़ रखने में सहयोग  दें।

स्वच्छ उजाला ,स्वच्छ वायु और स्वच्छ जल से वातावरण साफ़ होगा तो विचार भी अच्छे आएंगे और उन विचारों की एक दिशा होगी।

  उद्यमिता का महत्व  उपसंहार

“स्वस्थ वातावरण से स्वस्थ विचार”अर्थात कारण एवं परिणाम साथ साथ होने वाला सिद्धांत, सम्पूर्ण विश्व पर अपने प्रभुता स्थापित करेगा ।

तथा उद्यमिता का महत्व  अमिट छाप छोड़ेगा।

प्रदीप मेहरोत्रा

एम्आई जी -1  हर्ष वर्धन नगर भोपाल -462003

Popular Post

Incubation Centers in Schools

जब विद्यार्थियों का जीवन लक्ष्य निर्धारित होगा, तभी वह निश्चय ले पाएंगे की, लक्ष्य प्राप्ति हेतु कौन कौन से प्रयत्न कैसे कैसे करना चाहिए। “सउद्देश्य प्रयास निश्चित परिणाम देता है” इस संदेश का ज्ञान होने से विद्यार्थी प्रयास करने हेतु उत्साहित रहेंगे तथा स्वयं के आधार पर जीवन जीने के लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकेगा।

Read More »

Community Entrepreneurship Hub

उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु सामुदायिक उद्यमिता केंद्र (Community Entrepreneurship Hub) परिचय उद्यमिता एक महत्वपूर्ण कारक है जो न केवल व्यक्तिगत आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करती है बल्कि समाज में रोजगार

Read More »

Top Fitness Trends to Watch in 2025

Introduction: Top Fitness Trends to Watch in 2025 The fitness industry is evolving rapidly, with new fitness trends emerging to meet the changing needs of health-conscious individuals. This blog presents

Read More »

    उद्यमिता का महत्व –प्रस्तावना

अगर ईश्वरत्व शब्द का अर्थ समझ मे आ जाये तो उद्यमिता का महत्व अपने आप समझ मे आ जायेगा।

उद्यमिता की विषेशताओ को समझने हेतु लिंक प्रस्तुत है:

https://readwrite.in/udyamita-ki-visheshtaen/

Udyamita ka mahtva
Read Write blogs for young entrepreneurs

 

“उद्यमिता एवं ईश्वरत्व” विषय, वास्तविकता के आधार पर प्रगति को नई दिशा देने का प्रयास है।

इस लेख के विचार पृथ्वी के सौरमंडल की सीमा तक ही सीमित हैं।

उद्यमिता का महत्व   – वर्णन 

वर्तमान परिवेश में सम्पूर्ण मानवीय समाज के विचार  विभिन्न विचारधाराओं में बंट चुके हैं तथा बंटते जा रहे हैं।

कारण चाहे राजनैतिक हो या सामजिक ,विचारों का समग्र रूप तामसिक होता जा रहा है।

 हम सब साथ मिलकर  विचार करें की सम्पूर्ण मानवीय समाज को फिर से सत्प्रवृत्ति की ओर उन्मुख किया जाये ।

किस प्रकार से विकासशील देशों को विकसित देशों की श्रेणी में लाएं ?

साथ ही सत्प्रवृत्तियों की ऐसी विचारधाराओं का प्रवाह शुरू किया जाए ताकि विकसित देश भी  सबसे हाथ मिलाकर आगे बढ़े।

ईश्वरत्व की व्याख्या:

अगर सम्पूर्ण सृष्टि के विकास का अध्यन करें तो पता चलता है की ईश्वरत्व एक विचार है।

जिस प्रकार विचारों का कोई रूप या सीमा नहीं होती उसी प्रकार ईश्वरत्व की भी कोई सीमा नहीं है।

 विचार बिना किसी समय सीमा के कहीं भी जा सकते हैं और वापस आ सकते हैं,।

उदाहरणार्थ हम स्वयं के विचारों को सौरमंडल की किसी भी सीमा में ले जाकर  वापस ला सकते हैं।

क्योंकि विचार निर्विकार हैं,अर्थात विचारों के अंदर छुपी शक्ति असीम है।

एवं इसी शक्ति का उपयोग करके विचार कहीं भी जा सकते हैं एवं कुछ भी कर सकते हैं।

उर्जा एवम ईश्वरत्व

वैज्ञानिक रूप से देखा जाये तो पता चलता है ईश्वरत्व शक्ति को ऊर्जा का नाम दिया गया है।

जिसका अर्थ है “काम कर सकने की योग्यता”।

मेरे मतानुसार इसी वैचारिक शक्ति को चेतना शक्ति कहते हैं।

सृष्टि की निरंतरता का मूलभूत आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक आधार है “काम एवं परिणामो का साथ साथ होना “

“एक वैचारिक शक्ति से अनेक शक्तियां साथ साथ पैदा होती हैं”, उनके अनेक रूप होते हैं ।

और रूपों के अनेक विचार होते हैं तथा यह क्रम अनवरत चलता रहता है।

विचारों की शक्ति को चेतना एवं रूपों की शक्ति को आत्मा का नाम दिया गया है।

इनका कार्य क्षेत्र अलग अलग है परन्तु प्रारम्भ एवं विकास साथ साथ होता है।

विचार शक्ति

इस लेख का विषय विचारों को चेतना शक्ति का आधार मान कर लिखा गया है।

क्योंकि विचारों की शक्ति का कोई रूप नहीं होता है अतः वह किसी भी सीमा से बाहर होती है ।अतः,इसी शक्ति को ईश्वरत्व की संज्ञा दी जाती है। 

फिर से दोहराया जाता है की विचार शक्ति में निरंतरता है, एक विचार से दूसरा विचार उनके रूप एवं रूपों में व्याप्त विभिन्न विचार इसी निरंतरता का द्योतक हैं।

सम्पूर्ण शक्ति अन्नत काल से निरंतर है,उसका मूलभूत कारण विचारों की निरंतरता है। 

हर मानव के अंदर विचार तीन रूपों में होते हैं,पहला सात्विक, दूसरा राजसिक तीसरा तामसिक वर्तमान दौर में सम्पूर्ण विश्व तामसिक प्रवृत्ति की ओर उन्मुख है।

उद्यमिता का इश्वरिये सिद्धांत एवं व्याख्या:

विषय की गहराई गहराई बताती है  कि सृष्टि की निरंतरता के परिपेक्ष्य में  उद्यम शब्द निरंतर क्रिया का परिचायक है।

जिसका उद्देश्य है प्रगति। 

सामजिक  परिस्थितिवश अधिकतर समय उद्यम शब्द का अर्थ बहुत ही सीमित रखा जाता है जैसे की कारखाना चलाना व्यवसाय करना आदि आदि।

वास्तविकता में अनेकों क्रियाएं विद्यालय चलाना,शिक्षा देना आदि भी उद्यमी प्रक्रियाएं हैं अगर उनमे निरंतरता और प्रगति है तो,ध्यान देने वाली दो बातें हैं (१)  निरंतरता (२)  प्रगति

निरंतरता का अर्थ है की गतिविधि को सिर्फ स्वयं के लाभ हेतु किसी भी प्रकार के बंधन में न रखकर हमेशा होने की परिधि में लाया जाय ।

एवं, प्रगति का अर्थ है गतिविधियों का परिणाम समाज एवं सृष्टि के लिए श्रेयस्कर हो और ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र तक बढ़ाया जाए।

जिस प्रकार विचारों में व्याप्त चेतना शक्ति ईश्वरत्व एवं निरंतरता का प्रतीक है ।

उसी प्रकार मानव के अंदर व्याप्त उद्यमिता भी निरंतरता का परिचायक है। 

हर मानव प्रगति करना चाहता है और लगातार करते रहना चाहता है,परन्तु उसके जीवन का सही लक्ष्य क्या हो?

इस प्रश्न का उत्तर समझने में उससे गलती हो सकती है। 

उद्यमिता की इस संक्षिप्त व्याख्या से ही इसका सम्बन्ध ईश्वरत्व से सही अर्थों में दृष्टिगोचर होता है।

सर्वमांगलिकता हेतु शिक्षितो में ,उद्यमिता का महत्व   की आवश्यकता: 

प्रश्न उठता है की शिक्षितो को उद्यमिता की भावना क्यों स्वीकार करना चाहिए ?

उन्हें स्वयं के लाभ को प्राथमिकता न देकर समाज एवं प्रकृति के लाभ को प्राथमिकता क्यों देना चाहिए ?

इन प्रश्नो का सही उत्तर पाने के लिए हमें विचारों की निरंतरता अवं उसके परिणामो पर ध्यान देना होगा। 

वैचारिक ऊर्जा का परिणाम 

वैचारिक ऊर्जा की गतिविधियों के फलस्वरूप,उजाला ,पवन,पानी एवं पृथ्वी आदि का निर्माण हुआ।

फिर पृथ्वी पर वनस्पति,पेड़,जीव जंतुओं ने आकार लिया।

ध्यान देने योग्य बात है की प्रकृति की गति मानवीय आकार पाकर विराम लेती है।

और प्रकृति की अपेक्षा है मानवीय आकार उसकी निरंतरता में सहयोगी सिद्ध हों बाधक न बनें।

अन्यथा दुर्गति यानि की प्रगति की विपरीत दिशा शुरू हो जाती है। 

  हमे अहसास करना है की  मानव को छोड़ बाकी सब जीव   स्वछंदता पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

अर्थात प्रकृति उन्हें सन्देश देती है “मैं तुम्हारे लिए हूँ” परन्तु मानव आकार प्रकृति सन्देश देती है “तुम मेरे लिए हो”। 

यहां तक की मानव को स्वयं के शरीर के कपड़ों आदि की जरूरतों को स्वयं पूरा करना होता है।

अगर हमें प्रकृति की निरंतरता को बनाये रखना है तो प्रकृति के इस सन्देश को आत्मसात करना होगा ।

और स्वयं की गतिविधियों को प्रकृति एवं समाज की प्रगति में साधक बनाने की दिशा में समर्पित कर देना होगा। 

अन्यथा परिणाम हम सब देख रहे हैं ,एटम बम के धमाके ,भूकंप, मानव को जला देना आदि और इसका भयावह अंतिम परिणाम की पृथ्वी का वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा।

अर्थात हमें स्वयं के घमंड से बाहर आकर सामाजिक प्रगति हेतु कार्य करना होगा,चाहे हम शिक्षक हैं तो भी और नेता हैं तो भी।

अतः सर्वमांगलिकता हेतु उद्यमी  विचार  की प्राथमिक आवश्यकता है।

शिक्षितो को उद्यमी बनाने हेतु सुझाव :

प्रश्न है स्वयं की और समाज की विचारधाराओं को किस प्रकार नई दिशा दे सकते हैं?

विषय से सम्बंधित मुख्य कठिनाई है की  उद्यमिता की भावना को कैसे आत्मसात किया जाए ?

जनाधार कैसे विकसित किया जाए?

इस कार्य हेतु निम्नलिखित विचारों का विस्तार बार बार करना होगा –

(अ) शरीर क्षणभंगुर है अतः स्वयं के लिए सही लक्ष्य का निर्णय करो। हमें इंसानो की चेतना शक्ति को जगाना होगा।

(ब)मानव का आकर लिया है तो समाज की प्रगति में सहायक बनो, यह स्वर्णिम अवसर है ।

ताकि, प्रकृति तुम्हे मानव के रूप में बार बार बुलाये। मानवीय प्रभुता को जगाना होगा।

उपरोक्त बातें कहना और लिखना  तो बहुत ही आसान हैं परन्तु क्रियान्वय बहुत ही कठिन है।

 जबकि मानव की रोटी,कपड़ा और मकान की बुनियादी शारीरिक आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पा रही हैं, तो वह प्रकृति और समाज की प्रगति के बारे में कैसे सोचेगा ?

अतः इस कार्य का आरम्भ अभियंताओं को ही करना पड़ेगा।

उनको स्वयं के मुख्य उद्देश्यों की तरफ ध्यान देना होगा। उद्देश्यों की तरफ ध्यान देने हेतु प्रकृति की कार्य करने की प्रवृत्ति की ओर ध्यान देना होगा। 

वैचारिक ऊर्जा एवम प्रभुता

वैचारिक प्रभुता मुख्य रूप से उजाले और वायु के माध्यम से सब तरफ व्याप्त है। वायु से जल और जल से जीवन का निर्माण होता है फिर अनेक रूप और विचार प्रचलन में आते हैं।

अभियंताओं द्वारा अच्छे कार्यों को करने के लिए एवं सम्पूर्ण मानव समाज की वैचारिक चेतना शक्ति को सही दिशा की तरफ जाग्रत करने के लिए “स्वच्छ अँधेरा ,स्वच्छ रौशनी ,स्वच्छ वायु एवं स्वच्छ जल व्यवस्था की तरफ सर्वप्रथम ध्यान देना होगा”।

पर्यावरण और वातावरण विचारों के विभिन्न रूपों से बनता है।

जब वातावरण स्वच्छ होगा तो विचार अपने आप स्वार्थ की धुंद से बाहर आएंगे।

और ,स्वस्थ विचार स्वस्थ समाज का निर्माण करेंगे।

मानव को समझ में आने लगेगा की वह अपनी बुनियादी आवश्यकताएं कैसे पूरी करे एवं सरकार की कार्य पद्धति एक निश्चित दिशा ले लेगी।

उद्यमिता का महत्व –   सम्पूर्ण विषय का सार

सम्पूर्ण विषय का सार है की विचारों में शक्ति है,निरंतरता है।

विचारों में व्याप्त इसी शक्ति का नाम चेतना शक्ति है।

चेतना शक्ति के कारण,विचारों ने अनेक रूपों और विचारों में आकर सम्पूर्ण प्रकृति का रूप लिया है।

आपको ध्यान देना होगा की सिर्फ मानव के रूप में आकर विचारों ने मानव को बुद्धि दी है की वह विचारों की शक्ति को समझे ।

इसी शक्ति को उद्यमिता कहते हैं।

 चेतना शक्ति ने यह इसलिए किया है की ताकि मानव प्रकृति की गति को आगे बढ़ा सकने में सहयोग करे।

उसके जीवन का लक्ष्य सत अर्थात अर्थात प्रगति हो ।

अन्यथा प्रकृति की गति विपरीत दिशा में बढ़ना प्रारम्भ हो जाएगी एवं सम्पूर्ण मानव समाज का अस्तित्व खतरे में पढ़ जायेगा।

इसी उद्यमिता की भावना को आत्मसात करते हुए अभियंता स्वयं की बुद्धि का इस्तेमाल करें और समझें की वैचारिक योजना के दो मुख्य स्रोत हैं ।

पहली स्रोत -चमक जो अँधेरे में भी होती है और उजाले में भी और, दूसरा स्रोत है वायु।वायु भी दोनों माध्यमों में होती है।

हवा से बनता है जल और जल से जीवन का निर्माण होता है।

अतः अभियंताओं के जीवन का मुख्य उद्देश्य है की विचारों के इन स्रोतों को  साफ़ रखने में सहयोग  दें।

स्वच्छ उजाला ,स्वच्छ वायु और स्वच्छ जल से वातावरण साफ़ होगा तो विचार भी अच्छे आएंगे और उन विचारों की एक दिशा होगी।

  उद्यमिता का महत्व  उपसंहार

“स्वस्थ वातावरण से स्वस्थ विचार”अर्थात कारण एवं परिणाम साथ साथ होने वाला सिद्धांत, सम्पूर्ण विश्व पर अपने प्रभुता स्थापित करेगा ।

तथा उद्यमिता का महत्व  अमिट छाप छोड़ेगा।

प्रदीप मेहरोत्रा

एम्आई जी -1  हर्ष वर्धन नगर भोपाल -462003